Gram Panchayat Haminpur Pilani Jhunjhunu

Haminpur

Gram Panchayat

Paramhans Ganesh Narayan Ji - Bavaliya Baba

पंडित परमहंस गणेश नारायण जी - बावलिया बाबा

बावलिया बाबा भक्त मंडल और भगवत जन कल्याण मिशन द्वारा प्रतिवर्ष निकाली जाने वाली दिव्य संदेश यात्रा हर वर्ष दिसंबर में होती है।

पंडित गणेशजी के जन्म, शिक्षा और बचपन के बारे में:

जन्म तिथि: विक्रम संवत 1903 कृष्ण पक्ष। दिन: गुरुवार|

पिता का नाम: पंडित श्री घनश्याम दासजी, रुगला खंडेलवाल|

जन्म स्थान: राजस्थान के झुनझुनु जिले में, नवलगढ़ के निकट बुगाला गांव।

शिक्षा: वह हर दिन नवलगढ़ तक चलते थे, जो कि बुगाला गांव से लगभग 14 किलोमीटर दूर है। उन्होंने अपने गुरु पंडित रुद्रेंद्र शास्त्रीजी के सक्षम मार्गदर्शन के तहत उनकी शिक्षा प्राप्त की। वह हिंदी और संस्कृत में अच्छी तरह से वाकिफ थे। वह एक भव्य ज्योतिषी थे।

पसंद: लेखन, कविता|

विवाह: 14 साल की उम्र में शादी देवी शेवंदी के साथ हुई, विक्रम संवत 1917 में, ज्येष्ठ बडी नवमी|

परिवार: गणेशजी को कुनानी और भानी नाम की दो बेटियां हुई।

पंडित गणेशजी के सिद्धि के बारे में:

विक्रम संवत 1942 नवलगढ़ के चोखानी परिवार के अनुरोध पर परमहंस गणेश नारायण जी ने नौ दिन के उपवास की शुरूआत की और देवी दुर्गा की पूजा की। उन्होंने एक शिव मंदिर के भीतर, अलगाव में, भोजन और पानी के बिना उपवास के दौरान, उन्होंने किसी से भी परेशान नहीं होने का अनुरोध किया था। आठ दिन बीत चुके थे, और गणेशजी ने शिव मंदिर के दरवाजे नहीं खोले थे। सभी स्थानीय पंडित इस तरह के समर्पित उपवास को सहन नहीं कर पाए, दसवें दिन, ईर्ष्या से, उन्होंने मंदिर में गए संयोग से इसी समय में देवी दुर्गा परमहंस गणेश नारायण जी के समक्ष प्रकट हुई और उनको आशीर्वाद दिया। स्थानीय पंडितों द्वारा यह असामान्य रूप से घुसपैठ, उनके संकल्प को बर्बाद करने के लिए हुई थी फिर भी, वह चोखानी परिवार को खुशी लाने में सफल रहे। इस घटना के कारण, गणेशजी आम लोक में लोकप्रिय हो गए। हालांकि, इस घटना के बाद गणेशजी निराश नहीं हुए। इसे सकारात्मक रूप से लेना, उन्होंने देवी दुर्गा से यह संकेत दिया कि यह अब एक भक्ति यात्रा शुरू करने का समय है। उनके परिवार ने इस प्रयास में उन्हें समर्थन दिया और उन्हें अपने घरेलू जिम्मेदारियों से मुक्त किया।

"डी-कैर" मंत्र: 1944 में, गणेशजी ने औपचारिक रूप से देवी दुर्गा द्वारा उन्हें दिखाए गए मार्ग का अनुसरण करने के लिए अपने परिवार सहित सभी संसारिक सुखों को त्याग दिया। इस अवधि के दौरान, देवी दुर्गा ने उन्हें इस मंत्र के साथ आशीर्वाद दिया और भगवान शिव की पूजा करने के लिए कहा। इस घटना के बाद, गणेशजी को अतीत और भविष्य में भी देखने की क्षमता के साथ आशीष मिली, जिसके परिणामस्वरूप वह हर समय एक एकांत रह रहे थे। साथ ही कोई घटना अगर घटित होती तो, उसको पहले ही वह बता दिया करते। जिससे इन लोगों में डर पैदा हो गया, लोग कहते थे कि वह पहले ही घटित होने वाली घटना को बता देते हैं। परमहंस गणेश नारायण जी के चमत्कार को लोग मानने लगे और उनकी भक्ति को देख लोग कहते हैं कि वह बावले हो गए हैं। जिसके बाद उनका नाम बावलिया बाबा रख दिया गया। इसके बाद वह गुढ़ागौड़जी गए और 13 महीने तक वहां की पहाड़ियों में ही भगवान की तपस्या की। यहाँ उनको "परमहंस" का शीर्षक दिया गया था। 

वहां से वह चिड़ावा की ओर चल दिए और चिड़ावा में उनका मन ऐसा लगा कि उन्होंने चिड़ावा को शिव नगरी का नाम दे दिया। उन्होंने पूरी तरीके से अघोरी का रूप ले लिया और मां दुर्गा की पूजा अर्चना शुरू कर दी। मां दुर्गा के उपासक बन गए, बताया जाता है कि चिड़ावा में वह दुर्गा माता का दिन-रात पाठ करते जिसके चलते लोग उनकी भक्ति को मानने लगे। लोग उनके ही भक्त हो गए वह जो भी बोल देते वह सत्य हो जाता।

 

बिरला परिवार: जुगल किशोर बिरला परमहंस गणेश नारायण जी की रोजाना सेवा करते थे। वह पिलानी से चिड़ावा बाबा से रोज मिलने आया करते थे। बाबा को खाना खिलाते, साफ सफाई करते तथा उनकी निस्वार्थ सेवा करते। उनकी सेवा से खुश होकर बिड़ला को परमहंस गणेश नारायण जी ने आशीर्वाद दिया और एक दिन पण्डितजी ने कहा कि जुगलकिशोर जा, कमाने निकल जा, आज तेरा शुभ दिन है। पण्डितजी की आज्ञा मानकर सेठ कलकत्ता की ओर चल दिये। रास्ते में उसे दाहिनी तरफ फन उठाये काला सांप मिला जो शुभ शकुन था मगर सेठ उसे अपशकुन मानकर वापिस लौट आये और पण्डितजी को पूरी घटना बतायी। पण्डित जी बोले जुगलकिशोर तुम से भारी गलती हो गयी यदि चला जाता तो चक्रवर्ती सम्राट बनता। जा अब भी तू यशस्वी बनेगा। अपनी करनी बरनी बन्द मत होने देना इसे सदैव चालू रखना। बिड़ला परिवार का नाम इसी प्रकार देश के प्रमुख उद्योगपतियों में गिना गया। ऐसी चमत्कार पूर्ण बातों से परमहंस के प्रति श्रद्धालुओं की भक्ति बढ़ती गयी।  बताया जाता है कि परमहंस गणेश नारायण जी को जुगल किशोर बिरला ने कई बार पिलानी चलने के कहा, लेकिन परमहंस गणेश नारायण जी तो चिड़ावा में ही अपना मन लगा चुके थे।

संवत 1969 पौष सुदी नवमी गुरुवार के दिन बावलिया बाबा ने चिड़ावा में अपना शरीर त्याग दिया। उनकी याद में बिड़ला ने जोहड़ खुदवा कर घाट बनवाया और उस पर एक ऊंची गणेश लाट नाम की स्तूप बनवाई। बताया जाता है कि स्तूप से पिलानी साफ दिखता था और पिलानी से बिरला बाबा के मंदिर के रोजाना दर्शन करते थे।

आज दुनिया में परमहंस गणेश नारायण बावलिया बाबा के करोड़ों भक्त हैं। उनकी जन्म स्थल बुगालो में उनका एक म्यूजियम भी है। जिसे मुंबई के एक ट्रस्ट द्वारा संचालित किया जाता है। उनके मंदिरों की बात करें तो उनका मंदिर बुगालो विद्यास्थली नवलगढ़, तपोस्थली गुढ़ागौड़जी, समाधि स्थल चिड़ावा के साथ-साथ खेतड़ी, पिलानी, मुकुंदगढ़, बांस गुड़ीवाड़ा, कोलकाता, हैदराबाद, अहमदाबाद, ग्वालियर, सूरत, मुंबई में भी स्थित है। लोग आज भी बाबा के चमत्कारों को मानते हैं और उनकी बाबा में आज भी सच्ची आस्था है। उनके चिड़ावा स्थित मंदिर में मेला भरता हैं। करोड़ो लोग उनकी पूजा करने आते हैं।

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